(जन्म जन्मांतर की एक रोचक, रहस्यमय और रोमांचक कहानी)
राज ऋषि शर्मा
राजर्षि प्रकाशन
नागवनी रोड, जम्मू
© कॉपीराइट, 2023, लेखक
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रहस्यमय यात्रा
अंधेरी रात हो। किसी भी प्रकार के प्रकाश का कहीं नाम निशाँ भी ना हो, ऐसे में कहीं जाना पड़े, तो मन पर भय का छा जाना स्वाभाविक ही है। विशेषतया मेरे जैसे डरपोक युवक के लिए तो बहुत ही कठिन होता है, जो कि दिन में अपनी परछायी से भी भयभीत हो जाता हो। मुझे यह कहने में कतई भी संकोच नहीं कि यदि मुझे किसी अँधेरे स्थान में जाना हो तो मेरे लिए बहुत ही कठिन हो जाता है। वैसे मैं अपने आप को डरपोक कहलाया जाना क़तई भी पसंद नहीं करता, किन्तु जो सच्चाई है, उसे अस्वीकार भी तो नहीं किया जा सकता। इसलिए विवशतावश ही सही जब मैं इस कहानी का एक पात्र बन ही गया हूँ तो मुझे यह स्वीकार करना ही पड़ेगा कि मुझे भय बहुत ही लगता है।
कोई चाहे अपने आप को कितना भी निडर क्यों ना समझता हो, किन्तु मैं तो समझता हूँ कि यदि उसका भी कुछ ऎसी ही परिस्थितियों से सामना हुआ हो तो, उसकी सात पीढ़ियां भी अंधेरे के नाम से ही डरने लगेंगी। मैं तो स्पष्ट कहता हूँ कि मुझे तो अँधेरे के नाम से ही बहुत डर लगता है। अँधेरे में घर से बाहर जाना तो दूर की बात, यदि मुझे अँधेरे में घर में ही एक कमरे से दूसरे कमरे में जाने के लिए भी कहा जाए तो मैं कांपने लगता हूँ। भगवान ना करे मुझे कभी अकेले में कहीं सोना पड़े तो मेरे विचार से वो मेरी अन्तिम रात्री ही होगी। कभी कभी तो मैं अपने साथ बीती हुई उस घटना को स्मरण करता हूँ तो मैं तो दिन के समय भी,एकांत में जाने से बहुत ही डर लगने लगता है।
मैं तो भगवान से सदैव ही इस बात की दुआ करता हूँ कि जिस प्रकार के हालत से मैं दो चार हुआ हूँ, कोई दूसरा न हो। उसे अपनी बहादुरी का जितना भी भ्रम बना रहे, उतना ही अच्छा है।
वास्तव में ऐसा यूं ही नहीं है। इसके पीछे एक लम्बी कहानी है। बहुत ही रहस्यपूर्ण व भयावह ! उसे याद करते ही मेरी रूह काँप जाती है। मेरे अंदर कंपकंपी सी दौड़ जाती है। यदि आप इसे सुनेंगे तो आप भी मेरी ही भाँती, रात के अँधेरे की बात छोडो, दिन में भी किसी एकांत स्थान पर जाने से डरने लग जाएंगे। मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि आपकी सारी बहादुरी तत्क्षण ही हवा हो जाएगी।